Watch “DILLI VALO YAD DILA DO VERO KI BALIDANI KO | By Piyush Jain | agaastyaa openmic” on YouTube
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हालत पानी की…
तालाब भी खामोश है ये नदिया भी बेहोश है
किल्लत पानी की है पर और सब मदहोश है
वादे थे तब जगजोश थे,शब्दो मे आगोश थे
बून्द बून्द को तरसे प्राणी,सब को सब होश है
है वेदना, है पीड़ा है, गर्मी का लू सा थपेड़ा है
अब घबराहट है क्या कोई है जो सब साथ है
है हकीकत है सबको पता सब ढोल रहे ये घड़ा
कोई मशगूल है,मजबूर है कोई किसी की भूल है
बेचैन है,तकलीफ है पर ये बह रहा है धीर में
पर सब की ही गुहार है, आंखों में बहती धार है
बनावट का प्राणी अब खुद को खुद से प्यार है
ना बचाव है ना संचाव है ना कही और बहता स्त्राव है
है अकाल सा ये अंतिम क्षण के तट पर जल अब
विंडम्बना में उलझा सिरा अब सूखे का निशान है
हाहाकार है मारमार है पर बहता टँकी का माल है
न तुझको पता न मुझको पता बस संचित होगा सवाल है
पर अब हाल ये जनाब है अब जवाब ही सवाल है
क्या विचार है क्या कार्य है क्या बातो का झमेला है
ना समाज है ना विकास है बस सबका अपना स्वार्थ है
करू बयान पर अब तीखा सबका मुझ पर ही प्रहार है…..
मेरी दुनिया…
मेरे हर ख्वाबो को एक लम्हे में आजाद किया
वो पिता है जिन्होंने मुझे हर बार आबाद किया
Happy Father’s Day My Super Hero 💜
मेरा घर…
मेरे दिल मे हर बार मुझे भी एक याद सताती है
में घर से दूर हु शायद मुझे यह याद दिलाती है
रह रहा हु यहा में घुट कर मेरे दिल के अंदर ही
मेरे घर की दीवार मुझे रोज आवाज लगाती है
बेचैनियां है जहन में मेरे,बाहर जमाने मे रहकर
मेरे घर मे मेरी यादे,मेरी बाते रोज खिलखिलाती है
मचल जाता है भावुक मन मेरा भी कभी कभी
मेरे घर की सारी यादे जब मेरा ही दिल जलाती है
चाहता नही हु में कभी दूर रहना यहा मेरे घर से
पर मेरे जीवन की मजबूरियां मुझसे करतब कराती है …
रुको मत चलते रहो..
रुको मत चलते रहो
थको मत बढ़ते रहो
इंतजार किसका करना
वक्त है गतिमान यारों
सोचो मत करते रहो
आशा रखो तुम
साथ ही उमंग रखो
विश्वास धारण कर
रुको मत चलते रहो
थको मत बढ़ते रहो
तुम हर पल तत्पर रहो
जोश रखो , जुनून रखो
हिम्मत रखो, आगे रहो
सकारात्मकता से
सजग रहो, स्वस्त रहो
स्वाभिमान रखो मन मे
साथ ही सुविचार रखो
रुको मत चलते रहो
थको मत बढ़ते रहो
शालीन रहो,सुकून रखो
मीठा सा स्वभाव रखो
मनन करो,चिंतन करो
प्रेम रखो , विवेक रखो
निश्चय करो ,धैर्य रखो
अभ्यास करो,प्रयास करो
सफल हो , विजय रहो
रुको मत चलते रहो
थको मत बढ़ते रहो..
माँ – मेरी जन्नत
माँ हमारी, ममता का दरबार लगाय बेठी है
हमारे सारे सुखों का वो भंडार लगाय बेठी है
हमारी हस्ती ही क्या होती अगर मा न होती
हमारे सारे दुखो पर वो प्यार लगाए बेठी है
हमारी हर नीव का वो तो पत्थऱ बनाये बेठी है
हमारी गौद पर ,उसका आँचल बिछाए बेठी है
इतना बढ़ा हुआ, मा यह सब तेरा ही दुलार है
तू मेरी हर ख्वाइश को हकीकत बनाएं बेठी है
तेरा प्यार, कितना प्यारा है माँ मेरे लिए यह
तू रोज मेरे माथे पर यह हाथ फिराए बेठी है
तेरा यह जीवन सदियों तक अमर हो है मा
मेरे खातिर तू तेरा जीवन मेरा बनाए बेठी है
मेरे जीवन की हर क्षण में हर बार याद आयी
वो मेरी ” माँ ” थी जो हर बार मेरे साथ आई
आओ रचे इतिहास..
बचपन के दोस्त..
हमारी मस्तिया देख महफ़िल भी शर्माती थी
फिर चुप कर बैठ जाना अब अच्छा नही लगता
और पहले महफ़िल भी बेवजह जमा लेते थे
अब वजह से महफ़िल भी ना जमना अच्छा नही लगता
झूठे वादों से , सच को संवार कभी लेते थे हम
अब सच्चे वादों को करना भी अच्छा नही लगता
रोज की गुस्ताखी तो हमारी हरकते करती थी
शांत अकेले में रहना अब अच्छा नही लगता
हमारी पढ़ाई भी तो कभी मस्ती में रहती थी
अब इन किताबो का जाल हमे अच्छा नही लगता
बस वो खेल दफन से हो गए है चिता में कही
गली में घुट घुट के जीना अब उन्हें अच्छा नही लगता
वो दिन कभी जब हमसे निकलना सीखते थे
जमानो में मिलना अब हमें अच्छा नही लगता
मचल जाते है पुराने किस्से हमारी यादों के कभी
यादों में यू रोज मिलना अब अच्छा नही लगता
ख्वाइश है खुदा से ,की वो दिन वापस ले आये
दूर दूर तुमसे रहकर, फिर अब अच्छा नही लगता
पैगाम..
कल लम्बे अरसे बाद फिर उसका पैगाम आया
लिखा था छोड़ो सब बातें फिर मोहब्बत करते है
मेने भी फिर आज यह पैगाम भेज दिया उसको
की आओ तुम जल्दी फिर से हम दीवानी करते है ,